Monday, October 25, 2021

भिकियासैंण का इतिहास

भिकियासैंण का इतिहास अपने आप में बहुत ही रोचक और ऐतिहासिक रहा है। भिकियासेन को पूर्व में नया पट्टी के नाम से जाना जाता था। और यहां पर सर्वप्रथम मंगच्वाडी़ बिष्ट बसे हुए थे। (वल्ला नया,पल्ला नया,कंगला सौं,सिलोर ) चार पट्टी का राजा भीकूवा मंगच्वाडी़ था। जहां पर आज तहसील है उसके ऊपरी भाग की जगह को ग्वेलखाव कहते हैं। बुजुर्गों के कथनाअनुसार भिकियासेन पहले वहीं रचा बसा था। जैसा कि आपको विदित है। उत्तराखंड देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। और यहां देवी देवताओं का वास और उनके मंदिर ऊंची ऊंची चोटियों पर बड़े बड़े गधेरों पर बने हुए हैं। पुरानी मान्यताओं के अनुसार ग्वेलखाव जहां नया गांव बसा था। वहां पर अहेडी़ नाम के एक पिचास का बहुत आतंक था गांव के लोग डरे सहमे से रहते थे और धीरे-धीरे लोगों ने उस इलाके को छोड़कर अपने मकान नीचे जहां आज भिकियासैंण का मूल गांव और बाजार बसा है। वहां पर बनाना शुरू कर दिया। लेकिन उस अहेडी़ का आतंक यहां भी बरकरार था। फिर किसी जानकार व्यक्ति द्वारा नया के राजा को यह बात कही गई कि यहां पर गुसाईं जाति के लोगों को स्थान दो इस प्रकार यहां पर सर्वप्रथम बाबा बाड़ नाथ बुबू को स्थान दिया गया और कहते हैं कि उनके द्वारा उस अहेडी़ नाम के पिचास को साध लिया गया और गांव में शांति का माहौल स्थापित हुआ तबसे बाबा वाड़ नाथ बुबू को श्रद्धा के रूप में माना,जाना और पूजा जाता है। जहां आज भिकियासेन ग्राम वासियों की जातरा लगती है। वहीं पर बाबा वाड़ नाथ बूबू का मंदिर स्थापित है। कहते हैं कि बाड़ नाथ बुबू ने यहां जिन्दा समाधी ले ली थी। और समाधि में एक छोटी खिड़की छोड़ दी थी और कहा था कि आप इसमें रोज सुबह एक कटोरी में दूध रख देना जिस दिन दूध ऐसे ही रहेगा समझ लेना उस दिन मैं परमात्मा में पूर्ण विलीन अर्थात ब्रह्मलीन हो गया हूं। इसके साथ साथ यहां पर प्राचीन शिव मंदिर,मां काली मंदिर,राजा हरुहित मंदिर,भुमियां बुबू मन्दिर भिकियासैंण की आस्था सुरक्षा और सुंदरता को बढ़ाते हैं। प्राचीन शिव मंदिर रामगंगा नदी के किनारे पर रामगंगा से लगभग 30 से 50 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित है ऋषि महात्माओं के अनुसार किसी समय रामगंगा का जल स्तर मंदिर के ऊपरी भाग वाले सीढ़ियों तक रहता था। जहां पर शिवरात्रि का बहुत पुराना मेला सदियों से अभी भी शिवरात्रि के दिन गंगा स्नान करके बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। श्रद्धा,भक्ति,भाव से ओतप्रोत रामगंगा को मां गंगा की तरह ही पूजा जाता है। दूर-दूर गांव से लोग यहां अपने देवी-देवताओं की जागर जातरा को नहलाने के लिए हरिद्वार की तरह आते हैं और शुद्धता और पवित्रता को धारण कर मन को स्वच्छ और निर्मल करके जाते हैं। भिकियासेन को मोक्ष धाम बैकुंठ धाम की उपाधि भी मिली है क्योंकि यहां का श्मशान घाट पूरे इलाके का मोक्ष धाम है गंगा तट होने के नाते इंसान की अंतिम यात्रा का सफर यहीं आकर थमता है यहां का मोक्ष धाम शिव मंदिर और मां काली मंदिर के बीच में पड़ता है अध्यात्म के जानकारों के अनुसार अगर चिता पुरुष की है तो चिता का धुआं शिव मंदिर की ओर और अगर चिता महिला की है तो चिता का धुवां माता काली मंदिर की ओर उड़ता है। यह अपने आप में विश्वास और हमारी आस्था को प्रबल कर देता है। यही कारण था कि पहले से आस पास के गांव क्षेत्र के लोग भिकियासैण हिटम छा कणम गाई समझ छी। नया हिटम छा कौछी। वही भिकियासेन से लगभग 15 किलोमीटर दूर चमड़खान दूदाधारी ग्वेल देवता का मंदिर विश्वास आस्था और मनोकामना को पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध है यहां लोग दूर-दूर से आकर अपनी मनोकामना मांगते हैं अर्जी लगाते हैं और ग्वेल देवता दुखों को दूर भी करते हैं।और मनोकामना को पूर्ण भी दूदाधारी कहने का मतलब है दूध का दूध पानी का पानी न्याय के मामले में सत्य और असत्य को अलग अलग करके दिखा देना। यहां से 35 किलोमीटर की दूरी पर माँ मानिला देवी का मन्दिर है। जहाँ श्रृद्धालु भारत से ही नही अपितु पूरे विश्व से आते हैं। बताते हैं कि मंदिर के पास जो पेड़ है उसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है और इसका नाम व वर्गीकरण अभी तक कोई नहीं कर पाया। पर्यटन,सुंदरता प्रकृति की अनमोल भेंट हरी-भरी ऊंची ऊंची चोटियां देवदार के लंबे लंबे वृक्ष जल संचय करने वाले बांज के विशाल वृक्ष बर्फीले हिमालय पर्वतों की श्रृंखला यहां से बहुत ही नजदीक और साफ दिखाई देती है। भिकियासेन आज अपने मूल गांव से नगर पंचायत में परिवर्तित हो गया है। भिकियासैंण से लगे हुए ग्रामीण लोगों ने यहां पर जमीन खरीद कर अपने निजी मकान और दुकान बना लिए हैं। भिकियासेन अनेकता में एकता का परिचय देता है। यहां पर सभी जाति समुदाय धर्मों के लोग बड़े प्रेम भाव से एक दूसरे के दुःख सुख मैं भागीदार बनते आए हैं। भिकियासैंण मैं लगभग सभी विभागों के कार्यालय तहसील, ब्लौक,हास्पिटल होने के साथ-साथ यह कुमाऊँ के इतिहास का गवाह भी है। किसी समय में भिकियासेन नया से ही गैरसैण,पंडुवाखाल, चौखुटिया,जौरासी,देघाट आदि जगहों को घोड़ों द्वारा खाने पीने के खाद्य सामानों को पहुंचाया जाता था क्योंकि सड़क यहीं तक थी और इससे पहले रामनगर से ही घोड़ो के द्वारा राशन आदि सामान लाया जाता था। इस प्रकार भिकियासेन पूरे इस इलाके का मुख्य अड्डा कहा जाता था। इसलिए पहले से ही यह कहावत बहुत प्रचलित है जो आज भी कभी-कभी किसी न किसी के मुंह से कहि या सुनी जाती है। मांसी गले की फांसी। चौखुटिया गले का हार। भिकियासेन को मत छोड़िए। जब तक दे उधार। भिकियासैंण अल्मोड़ा जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित है। भिक्यासैंण रामगंगा,गगास और नौरड़ नदी का संगम स्थल भी है। यहाँ की सुंदरता नैशर्गिक है। इसको नदियों का शहर और त्रिवेणी घाट के नाम से भी जाना जाता है। इसके पूर्व में चौखुटिया,द्वाराहाट तथा रानीखेत पश्चिम में सल्ट उत्तर में चमोली जनपद की गैरसैंण,तथा दक्षिण में नैनीताल जनपद की बेतालघाट तहसील है। यह चारो ओर पर्वतों से घिरे बीच के मैदानी भाग में स्थित है। भिकियासेन की सीमाएं कुमाऊं मंडल से होते हुए गढ़वाल तक की सीमाओं को मिलाती है। रामनगर से बस के जरीये या निजी वाहनों से चलने वाले यात्री गण अपने पहाड़ी भाई दाज्यु मां गर्जिया के दर्शन करके मोहन से गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों को रोड यहां से जाती है। मड़चुला भतरोंजखान बाया बासोट के जरिए भिकियासेन से मांसी,चौखुटिया,पंडुवाखाल,गैरसैण कर्णप्रयाग,बद्रीनाथ को मिलाने वाली यह अहम और मुख्य पुरानी सड़क हैं। इसका सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन रामनगर है। जो लगभग 90 Km दूर है दूसरा रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। जो 135 Km की दूरी पर भवाली मार्ग से होकर जाता है। यहां से दिल्ली,नैनीताल,हल्द्वानी, द्वाराहाट,रानीखेत,अल्मोड़ा, कर्णप्रयाग,बद्रीनाथ,गैरसैंण,मांसी, देघाट,मानिला के लिए बसें चलती है। भिकियासैंण से रानीखेत 53 km अल्मोडा लगभग 105 km दूर है। नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर है। भिकियासैंण में सरकारी और प्राइवेट दोनों शिक्षण संस्थान उपलब्ध है। राजकीय अटल उत्कृष्ट इंटर कॉलेज,राजकीय इंटर कन्या विद्यालय, सनराइज पब्लिक स्कूल, शिशु मंदिर, गोड ग्रेस एकेडमी, राजकीय प्राथमिक विद्यालय तथा राजकीय महाविद्यालय भिकियासैंण में उपलब्ध हैं।

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